शुक्रवार, 2 जनवरी 2015


                         ग़ज़ल

दे     रहा    आवाज़    कोई    खिड़कियाँ    तो    खोलिए   
रंज     है    नाराज़गी     है   बात    क्या    है     बोलिए 

दुश्मनी   का  क्या   किसी   से  भी   कहीं  भी  कीजिये    
दोस्ती    करने    से     पहले   आदमी    को     तोलिए 

रोज़    उनको    देखते    हैं    और    कहते   हैं   ग़ज़ल   
वो   हमारे   हों     होँ   हम  तो  उन्ही  के  हो   लिए 

रात    देखा   मुस्कुराते    ख़्वाब   में  माँ -  बाप   को     
ज़िन्दगी   के   पाप   सारे   एक   पल   में  धो    लिए 

था   यही  डर   शाईरों   की   ज़ात   ना   बदनाम    हो      
महफिलों   में  मुस्कुराए    कागज़ों    पे   रो   लिए 

सिर्फ    'तनहा'   चाशनी    से   ज़ाइक़ा   आता   नहीं    
ज़िन्दगी   में   आंसुओं   का   भी  नमक  तो  घोलिये 

         -  प्रमोद  कुमार  कुश 

       

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013


            ग़ज़ल 

रात    हमने  नींद   ली  आराम   की
ज़िंदगी   लगने  लगी  अब  काम  की

ज़िंदगी   क्या   है  हुआ  एहसास  तो
ज़िंदगी    हमने   तुम्हारे   नाम   की

बन  गईं   फ़ैशन   की   ख़बरें      सुर्खियाँ
दब   गयी  हर  बात क़त्ले -आम  की

आप के  होठों  ने  जब  से छू  लिया
खुल  गई  तक़दीर    ख़ाली    जाम     की

छोड़िये   किस्से   वफ़ा   ओ   इश्‍क़   के
आईये  बातें  करें   कुछ   काम  की

सिर्फ़   लिखते  हैं  ग़ज़ल  बेबह्र   वो
फिर  मिली  उनको  सज़ा  ईनाम  की


              -  प्रमोद कुमार कुश 'तनहा' 

रविवार, 1 दिसंबर 2013

ग़ज़ल : कितने मीठे मीठे लोग ...


कितने    मीठे    मीठे    लोग
देखो   कितने   फीके     लोग

रोयेगा   मत  चख़  कर  देख
हैं   मिर्ची   से   तीखे     लोग

देख  पड़ोसी  की    तकलीफ़
दीये   जलाते  घी  के    लोग

तू   अपने   बचने   की  सोच
तेरे   आगे  -  पीछे       लोग

इक  'तन्हा' की सुनता कौन
जिसका वक़्त उसी  के लोग

-- प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'

www.reverbnation.com/pkkush

शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

ग़ज़ल ... सिर्फ़ हम थे



                                   ग़ज़ल

शरीक़े   ग़म   तुम्हारे    सिर्फ़   हम   थे  
ज़माने   के   सितम  थे  सिर्फ़   हम   थे  

फ़क़त   इक   बार  तुमसे   बात  की  थी 
निशाने   पे   सभी   के   सिर्फ़   हम  थे  

तुम्हारे    साथ    लाखों        मुस्कुराये
तुम्हारे   साथ   सिसके   सिर्फ़   हम   थे        

ग़ज़ल    की   बात   करते   थे   हज़ारों 
ग़ज़ल  से   बात   करते   सिर्फ़  हम   थे  

चलेंगे    साथ    था   वादा      तुम्हारा 
चले   'तनहा'  सफ़र   पे   सिर्फ़  हम  थे   


          - प्रमोद  कुमार  कुश  'तनहा' 

       www.reverbnation.com/pkkush

रविवार, 17 फ़रवरी 2013

मुहब्बत का सफ़र ...



मुहब्बत का  सफ़र  सूना  बहुत   है 
वफ़ा  का  रास्ता   तनहा बहुत   है 

यहाँ भी तुम  वहां भी  सिर्फ तुम  हो  
तुम्हारा  हर  कहीं  चर्चा  बहुत    है 

हुआ कुछ  नाम  उसके  ढंग    बदले 
सुना  है  आजकल  उड़ता  बहुत   है 

ये  कैसा ज़ख्म  है  भरता   नहीं  है   
नहीं  दिखता  मगर  दुखता  बहुत  है 

न  बंगला है  न गाड़ी  ग़म  नहीं  है  
कि सर पे  बाप का  साया  बहुत  है 

मैं  साहिल  हूँ मेरी  ख़ामोशियों   से 
समंदर   बारहा   उलझा   बहुत   है 

        - प्रमोद कुमार कुश 'तनहा' 

बुधवार, 15 अगस्त 2012

बचकर चला करें ...

हैं आप माहताब तो बेशक़ हुआ करें
रोशन यहाँ चराग़ है बचकर चला करें

इक और मुलाक़ात को वो बेक़रार हो
बस पहली मुलाक़ात पे इतना खुला करें

हमने दवा तो की मगर रिश्ते न बच सके
अब दूरियां निभा सकें आओ दुआ करें

ख़ामोशियों का और ही मतलब न ले कोई
होठों का इस्तेमाल भी थोड़ा किया करें

जाती हैं हिचकियाँ हमें मुश्किल में डाल के
'तनहा' का नाम रात को कम ही लिया करें

- प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'

मंगलवार, 27 मार्च 2012

यूं ही चलते हुए ...

यूं ही चलते हुए ...

यूं ही चलते हुए रुका होगा
फ़िर तेरे शहर में लुटा होगा

उसकी आँखें बहुत छलकती हैं
वो समंदर से खेलता होगा

ख़्वाब आते हैं बंद पलकों में
रात भर जागने से क्या होगा

आज माँ बाप की दुआ ले लूँ
मेरा आँगन हरा भरा होगा

कुछ तुम्हारी जफ़ा से टूट चुके
कुछ मुक़द्दर में ही लिखा होगा

रूठकर चल दिया मगर 'तनहा'
फ़िर किसी मोड़ पर खडा होगा

- प्रमोद कुमार कुश ' तनहा '