ग़ज़ल
रात हमने नींद ली आराम की
ज़िंदगी लगने लगी
अब काम की
ज़िंदगी क्या है हुआ एहसास तो
ज़िंदगी हमने तुम्हारे
नाम
की
बन गईं फ़ैशन की ख़बरें सुर्खियाँ
दब गयी हर बात क़त्ले -आम
की
आप के होठों ने जब से छू लिया
खुल गई तक़दीर ख़ाली जाम की
छोड़िये किस्से वफ़ा ओ इश्क़ के
आईये बातें करें कुछ काम की
सिर्फ़ लिखते हैं
ग़ज़ल बेबह्र वो
फिर मिली उनको सज़ा
ईनाम की
- प्रमोद कुमार
कुश 'तनहा'
3 टिप्पणियां:
वाह ! बहुत बढ़िया प्रस्तुति . आभार . नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .
कृ्प्या विसिट करें : http://swapniljewels.blogspot.in/2014/01/blog-post_5.html
http://swapniljewels.blogspot.in/2013/12/blog-post.html
Wah wah ..अति सुन्दर...
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