गुरुवार, 17 जनवरी 2008

सिर्फ़ मुड़ मुड़ के देखते जाओ ...

आग अश्कों से हम लगा लेंगे
उनके दामन से फिर हवा लेंगे

सिर्फ़ मुड़ मुड़ के देखते जाओ
बेवफ़ाई का ग़म उठा लेंगे

सोच पे आपकी हुकूमत है
एक शायर से और क्या लेंगे

आप बैठे हैं दिल के शीशे में
हाले - दिल आपको सुना लेंगे

आप 'तनहा' का साथ दे दें तो
जश्ने-महफ़िल को हम चुरा लेंगे

--- प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'

1 टिप्पणी:

Anil Bhardwaj ने कहा…

Dear Brother,

Pranam,

Aapki lekhni mein bahut DAM hai.

Aapki rachnain Rangkarmi par bhi daal raha hun.

Please visit http://rangkarmi.blogspot.com/