सोमवार, 7 जुलाई 2008

जुल्फें न यूं बिखेरो ...

जुल्फें न यूं बिखेरो आँचल न यूं उड़ाओ
सावन के बादलों पे थोड़ा सा तरस खाओ

बरसात का ये मौसम जायेगा कर के पागल
मेरे क़रीब आ के चूड़ी न खनकनाओ

तिरछी नज़र से मुझको देखो न मुस्कुरा के
दीवाना हूँ मुझे तुम इतना न आजमाओ

गाती हुई घटा का संगीत थम न जाए
बूंदों की ताल पे तुम पायल न छ्नछ्नाओ

बांधा है मुश्किलों से छोटा - सा आशियाना
अंगड़ाई के बहाने बिजली न तुम गिराओ

- प्रमोद कुमार कुश ' तनहा '


11 टिप्‍पणियां:

seema gupta ने कहा…

रात के साये का बहाना न करो,
नादाँ दिल को यूँ सताने ,
अब अपनी बिंदिया न चमकाओ....

" bhut sunder mnbhavan geet"

Regards

* મારી રચના * ने कहा…

Tanhaji... bahot sunder rachna hai aapki...

rakhshanda ने कहा…

गाती हुई घटा का संगीत थम न जाए
बूंदों की ताल पे तुम पायल न छ्नछ्नाओ

बांधा है मुश्किलों से छोटा - सा आशियाना
अंगड़ाई के बहाने बिजली न तुम गिराओ


bahut sundar pramod ji...

बेनामी ने कहा…

sir,
Bahut achhi racchna hai!

regards

अंगूठा छाप ने कहा…

wah!

राकेश खंडेलवाल ने कहा…

गाती हुई घटा का संगीत थम न जाए
बूंदों की ताल पे तुम पायल न छ्नछ्नाओ

आपकी नाज़ुक खयाली अच्छी लगी.

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं :
जुल्फें न यूं बिखेरो आँचल न यूं उड़ाओ
सावन के बादलों पे थोड़ा सा तरस खाओ

बरसात का ये मौसम जायेगा कर के पागल
मेरे क़रीब आ के चूड़ी न खनकनाओ

बहुत ही खूबसूरत रचना है!!!!!!! शुभकामनाएँ !!!!!!!!!!!!

शोभा ने कहा…

sundar gazal hai. har sher badhiya hai. badhayi.

* મારી રચના * ने कहा…

kafi waqt ho gaya.. kuch naya apane likha nahi.. hum intezaar kar rahe hai kuch accha padhne ka..

Dev ने कहा…

बांधा है मुश्किलों से छोटा - सा आशियाना
अंगड़ाई के बहाने बिजली न तुम गिराओ


Pramod ji,
Superb... Great
Mai kya kahoo.. bas sabd nahi hai...

Regards
http://dev-poetry.blogspot.com/

बेनामी ने कहा…

so simple..so beautiful