यूं ही चलते हुए रुका होगा
फ़िर तेरे शहर में लुटा होगा
उसकी आँखें बहुत छलकती हैं
वो समंदर से खेलता होगा
ख़्वाब आते हैं बंद पलकों में
रात भर जागने से क्या होगा
आज माँ बाप की दुआ ले लूँ
मेरा आँगन हरा भरा होगा
कुछ तुम्हारी जफ़ा से टूट चुके
कुछ मुक़द्दर में ही लिखा होगा
रूठकर चल दिया मगर 'तनहा'
फ़िर किसी मोड़ पर खडा होगा
- प्रमोद कुमार कुश ' तनहा '
12 टिप्पणियां:
Bahut badhiya!
उसकी आँखें बहुत छलकती हैं
वो समंदर से खेलता होगा
बहुत खूब ...सुंदर गजल
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 29-०३ -2012 को यहाँ भी है
.... नयी पुरानी हलचल में ........सब नया नया है
उसकी आँखें बहुत छलकती हैं
वो समंदर से खेलता होगा
SUNDAR BHAWABHIWYAKTI.
उसकी आँखें बहुत छलकती हैं
वो समंदर से खेलता होगा
BEAUTIFUL LINES
कुछ तुम्हारी ज़फ़ा से टूट चुके
कुछ मुक़द्दर में ही लिखा होगा .....
ज़िन्दगी आँख से टपका हुआ बेरंग क़तरा
तेरे दमन की हवा पता तो आंसू होता
bahut sundar ghazal umda ashaar.
उसकी आँखें बहुत छलकती हैं
वो समंदर से खेलता होगा..vaah is ashaar ke to kya kahne.
वाह ... बहुत ही बढि़या।
बहुत बढ़िया रचना...
waah bahut badiya ख्वाबो के दामन से ...
BAHUT SUNDAR .BADHAI
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aapki sari ghazlen bahut hi achchhi lagi dost,shukriya.
उसकी आँखें बहुत छलकती हैं
वो समंदर से खेलता होगा
बहुत खूब ...सुंदर गजल
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