रविवार, 17 फ़रवरी 2013

मुहब्बत का सफ़र ...



मुहब्बत का  सफ़र  सूना  बहुत   है 
वफ़ा  का  रास्ता   तनहा बहुत   है 

यहाँ भी तुम  वहां भी  सिर्फ तुम  हो  
तुम्हारा  हर  कहीं  चर्चा  बहुत    है 

हुआ कुछ  नाम  उसके  ढंग    बदले 
सुना  है  आजकल  उड़ता  बहुत   है 

ये  कैसा ज़ख्म  है  भरता   नहीं  है   
नहीं  दिखता  मगर  दुखता  बहुत  है 

न  बंगला है  न गाड़ी  ग़म  नहीं  है  
कि सर पे  बाप का  साया  बहुत  है 

मैं  साहिल  हूँ मेरी  ख़ामोशियों   से 
समंदर   बारहा   उलझा   बहुत   है 

        - प्रमोद कुमार कुश 'तनहा' 

5 टिप्‍पणियां:

Dinesh Mishra ने कहा…

शब्द रचना वास्तव में सराहनीय है
हमारी बधाई स्वीकार करें !

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह! निशब्द करे दिया आपने....

Unknown ने कहा…

VERY NICE

Unknown ने कहा…

VERY NICE

Unknown ने कहा…

VERY NICE HEART TOUCHING