मुहब्बत का सफ़र सूना बहुत है
वफ़ा का
रास्ता तनहा बहुत है
यहाँ भी तुम वहां भी सिर्फ तुम
हो
तुम्हारा हर
कहीं चर्चा बहुत है
हुआ कुछ नाम
उसके ढंग बदले
सुना है आजकल उड़ता
बहुत है
ये कैसा
ज़ख्म है भरता नहीं है
नहीं दिखता मगर दुखता बहुत है
न बंगला है न गाड़ी ग़म नहीं है
कि सर पे बाप
का साया बहुत है
मैं साहिल
हूँ मेरी ख़ामोशियों से
समंदर बारहा उलझा बहुत है
-
प्रमोद कुमार कुश 'तनहा'
5 टिप्पणियां:
शब्द रचना वास्तव में सराहनीय है
हमारी बधाई स्वीकार करें !
वाह! निशब्द करे दिया आपने....
VERY NICE
VERY NICE
VERY NICE HEART TOUCHING
एक टिप्पणी भेजें