सोमवार, 24 दिसंबर 2007

ज़िन्दगी क्या है ....

रात हमने नींद ली आराम की
जिन्दगी लगने लगी अब काम की

जिन्दगी क्या है हुआ एहसास तो
जिन्दगी हमने तुम्हारे नाम की

बन गईं फैशन की खबरें सुर्खियाँ
दब गयी हर बात कत्ले-आम की

आप के होठों ने जब से छू लिया
खुल गई तकदीर खाली जाम की

छोडिये किस्से वफा ओ इश्क के
आईये बातें करें कुछ काम की

सिर्फ लिखते हैं ग़ज़ल बेबह्र वो
फिर मिली उनको सज़ा ईनाम की
- प्रमोद कुश ' तनहा '

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